दोस्तो जैसा कि हम अच्छी तरह से जानते है कि ओलंपिक खेलो का आयोजन, अंतराष्ट्रीय एकता को बनाये रखने कि दृृष्टि से अंतराष्ट्रीय ओलंपिक समीति के द्वारा हर 4 वर्ष के अंतराल में आयोजित किया जाता है । इसी कड़ी में इस बार ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेलों को वर्ष 2020 में टोक्यो में आयोजित किया जाना था। परतुं कोरोना महामारी के कारण इन खेलो को 2020 में स्थगित करते हुए वर्ष 2021 में आयोजित किया गया है।
जैसा कि आप जानते है कि ओलंपिक खेल सरकारी एग्ज़ाम (Government Exam) कि दृष्टि से बहुत ही महत्तवपूर्ण मानेे जाते है, और सभी एग्ज़ा़म में ओलंपिक से एक ना एक सवाल (question) देखने को जरूर मिलते है ।
अत: यह लेख आपके एग्ज़ाम को देखते हुए तैयार किया गया है जो आपकेे रेल्वे (railways), एसएससी (SSC), बेंक (Bank), पटवारी (Patwari), पुलिस /दरोगा (Police / Inspector), और सभी वन डे एग्ज़ाम (All One Day Exam) के लिए महत्वपूूर्ण साबित होगा और उन सभी एग्ज़ा़म में यहां से सवाल देखने को जरूर मिलेंगे जिनमें करेंट अफेयर्स (current affairs) पूछे जाते है।
- ओलम्पिक खेल की शुरुआत – 776 ई. पू.
- ओलम्पिक खेलों को यूनान के देवता ज्यूस के सम्मान में यूनान/ग्रीक के ओलम्पिया (Olympia) शहर से की गई थी।
- अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति की स्थापना – 1894 सखोन (Sakhon) में कि गई।
- इसका मुख्यालय – लोसान स्वीजरलेण्ड (Lausanne Switzerland) में स्थित है।
- आधुनिक ओलंपिक खेलों का आयोजन – 1896 में पियरे डे कोबेर्टिन (Pierre de Coubertin) के प्रयास से एथेंस में शुरू किये गए।
- ओलंपिक खेलों का उद्देश्य – ”सिटियस अल्टियस फोर्टियस” जिसका मतलब क्रमश: तेज उंचा बलवान होता है, और जिसे 1920 में एंटवर्प ओलंपिक के दौरान पहली बार शामिल किया गया।
- ओलम्पिक मशाल – ओलंपिक मशाल को पहली बार 1928 में एम्सटर्डम ओलंपिक में पहली बार शामिल किया गया, ये विशेष प्रकार कि मशाल होती है जिसे सूर्य की रोशनी से प्रज्ज्वलित किया जाता है।
- वहीं मशाल अपने आधुनिक रूप में साल 1936 में बर्लिन ओलंपिक के दौरान आई।
- ओलम्पिक ध्वज – ओलंपिक ध्वज साल 1913 में पियरे डे कोबेर्टिन के माध्यम से तैयार किया गया और वहीं इसे पहली बार 1920 में एंटवर्प ओलंपिक के दौरान पहली बार फहराया गया था, ओलंपिक के ध्वज में 5 रिंग होते है जो अलग-अलग महाद्वीपों को दर्शातें है जो निचे दिए गए ।
- लाल – उत्तर और दक्षिण अमेरिका, नीला – यूरोप, हरा – आस्ट्रेलिया, पीला – एशिया, काला – आफ्रीका
- भारतीय ओलंपिक परिषद की स्थापना वर्ष 1924 में कि गई थी और भारतीय ओलंपिक परिषद के पहले अध्यक्ष जमशेद जी टाटा थे।
- भारत ने ओलंपिक में पहली बार अपनी टीम वर्ष 1920 एंटवर्प ओलंपिक में भेजी थी ।
- ओलंपिक खेलों में शपथ लेना वर्ष 1920 एंटवर्प ओलंपिक के दोरान पहली बार शुरू किया गया था।
- ओलंपिक खेलों में शुभांकर को वर्ष 1968 मैक्सिको ओलंपिक से शुरू किया गया था।
- ओलंपिक खेलों में महिलाओं की भागीदारी वर्ष 1900 से शामिल की गई इसका आयोजन फ्रांस की राजधानी पेरिस में किया गया था, जबकि भारत की और से ओलंपिक में भागीदारी पेश करने वाली महिला मेरी लीला राव थी।
- टीवी पर ओलंपिक खेलों का पहली बार प्रसारण की शुरुवात वर्ष 1960 रोम से कि गई।
- एक ही ओलंपिक में सर्वाधिक गोल्ड मेडल (gold medal) जीतने वाले खिलाड़ी – माइकल फेल्पस (Michael Phelps) है यह USA के प्रतिष्ठित तैराक है, इन्होंने यह किर्तिमान वर्ष 2016 के रियो (Rio Olympic) ओलंपिक के दौरान रचा था। साथ ही साथ यह ओलंपिक में सर्वाधिक स्वर्ण पदक (gold medal) प्राप्त करने वाले खिलाड़ी भी है।
- माइकल फेल्पस ने कुल 23 गोल्ड मेडल 3 रजत एवं 2 कांस्य मेडल जीते हैं
ओलंपिक में भारत
- भारत ने अपने पहले ओलंपिक की शुरुआत 1900 के पेरिस ओलंपिक (Paris Olympic) केे साथ कि थी । तब भारत अंंग्रेजो के अधीन था। अत: भारत की ओर से कलकता में जन्में ब्रिटिश व्यक्ति नॉर्मन प्रिचर्ड (Norman Pritchard) ने आधुनिक ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में पहले भारतीय खिलाड़ी के रूप में भारत का प्रतिनिधित्व किया।
इन्होंने एथलेटिक्स कि विभिन्न स्पर्धाओं में भाग लिया था और यही नहीं उन्होंने 200 मीटर स्प्रिंट और 200 मीटर बाधा दौड़ (हर्डल रेस) में दो रजत पदक भी देश को दिलाए. जो कि देश के लिए पहला इंडिविजुअल मेडल भी था।
भारतीय पुरूष हाॅॅॅकी टीम
भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने दिग्गज खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद (Major Dhyan Chand) के नेतृत्व में वर्ष 1928 में हाॅॅकी के लिए स्वर्ण पदक जीता इस ओलंपिक का आयोजन एम्स्टर्डम (नीदरलैंड) में किया गया था। यह भारत के लिए बहुत ही गौरव का पल था, क्योंकि यह भारत का पहला स्वर्ण पदक था ।
ओलंपिक में हाॅॅकी की बात करे तो भारत का सफर बहुत ही गौरव पूर्ण रहा है, क्योंकि भारत ने अब तक हॉकी में 8 स्वर्ण पदक सहित कुल 12 पदक जीत लिए हैं।
इस सफर की शुरूआत होती है, वर्ष 1928 केे एंटवर्प ओलंपिक से जब भारतीय पुरूष हॉकी टीम ”हॉकी के जादूगर” के नाम से मशहूर मेज़र ध्यानचंद के नेतृृत्व में देश के लिए पहला स्वर्ण पदक ले कर आई ।
इसके बाद तो हॉकी में मेडल जीतना तो मानो भारतीय टीम की आदत सी हो गई है। क्योंकि जो सफर 1928 में शुरू हुआ था, वह वर्ष 1928-1956 ( 1928, 1932, 1936, 1948, 1952, 1956) तक लगातार 6 स्वर्ण पदक तक चलता रहा ।
वहीं वर्ष 1960 में भारतीय टीम को पाक्स्तिान से हार का सामना करना पड़ा जिससे भारतीय टीम को रजत पदक से संतोष करना पड़ा, पर इस हार का बदला भारतीय टीम ने अगले ही ओलंपिक में चुकाया और पाक्स्तिान टीम को वर्ष 1964 में टोक्यो में आयोजित ओलंपिक में हरा कर एक बार फिर से स्वर्ण पदक पर कब्जा करने मेंं सफल रहीं।
इसके बाद वर्ष 1968 और 1972 में दो कांस्य पदक और 1980 मास्को ओलंपिक में पुन: स्वर्ण पदक जीतने के बाद मानो ये सफर रूक सा गया हो।
परन्तु वर्ष 2020 के टोक्यो ओलंपिक में जिसका आयोजन 2021 में किया गया था। भारत के लिए पुन: अपने स्वर्णीम युग को जगा दिया है क्योंकि इस बार फिर भारतीय टीम ने मनप्रीत सिंह की कप्तानी में शानदार प्रदर्शन किया है, हांलाकि देश को कांस्य पदक से संतोष करना पड़ा परन्तु इस प्रदर्शन ने एक बार फिर देश कि स्वर्ण पदक की उम्मीदो को जगा दिया है।
केडी जाधव (K. D. Jadhav): पुरुषों की फ्रीस्टाइल (Freestyle) बैंटमवेट -1952 हेलसिंकी ओलंपिक (Helsinki Olympic) – कास्ंय पदक (Bronze medal)
कहने को तो भारत ने अपना पहला व्यक्तिगत ओलंपिक पदक वर्ष 1900 में ही पेरिस ओलंपिक में नॉर्मन प्रिचर्ड (Norman Pritchard) के रूप में जीत लिया था। परन्तु न तो वह भारतीय थे। और ना ही भारत देश उस समय स्वतंत्र था।
अत: बात करते है स्वतंत्रता के बाद की तो भारत के लिए पहला व्यक्तिगत पदक जितने में कामयाबी हासिंल होती है, भारतीय पहलवान केडी जाधव (K. D. Jadhav) को जिन्हे पहलवान खशाबा दादासाहेब जााधव (Khashaba Dadasaheb Jadhav) के नाम से जाता है ये बात हे वर्ष 1952 के हेलसिंकी ओलंपिक की जंहा जाधव ने सिर्फ अपनी मेहनत के बल पर न सिर्फ ओलंपिक के लिए चुने गए बल्कि स्वतंत्र भारत के पहले व्यक्तिगत क्षेणी में पदक (कांस्य पदक) जितने में भी कामयााब रहे।
लिएंडर पेस (leander paes): पुरुष एकल टेनिस – 1996 अटलांटा ओंलपिक (Atlanta Olympic) – कास्ंय पदक (Bronze medal)
इस बार का ओलंंपिक कुछ खास था। क्योंकि जहां इस वर्ष आधुनिक ओंलपिक अपनी 100वी वर्षगांठ बनाने जा रहा था। वहीं भारत का कई खेलोंं में अब तक खाता भी नही खुला था ।
यह बात है वर्ष 1996 के अटलांटा ओंलपिक कि जंहा आधुनिक ओलंपिक शुरू हुए 100 वर्ष पूरे हो रहेंं थे, वहीं भारत कि नज़़रे लिएंडर पेस पर जमी थी, जो कि भारतीय टेनिस के एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी़ थे।
इस बीच इस युवा ने भारत की कमान संभाली और टेनिस में लिएंडर पेस (Leander Paes) ने भारत को अपना पहला पदक (कास्ंय पदक) जितवाया।
कर्णम मल्लेश्वरी (Karnam Malleswari): वूमेंस 54 किग्रा वेटलिफ्टिंग (Weightlifting) – 2000 सिडनी ओलंपिक (Sidney Olympic) – कांस्य पदक (Bronze medal)
वैसे तो भारत की ओर से ओलंपिक में भाग लेने वाली पहली महिला मेरीलीला राव (Mary Leela Rao) थी, परन्तु महिला के रूप पदक जीत कर खाता खोलने का काम किया भारत कि होनहार बेटी कर्णम मल्लेश्वरी ने ।
वर्ष 2000 में सिडनी ओलंपिक में कर्णम मल्लेश्वरी ने वेटलिफ्टिंग खेल के 54 किग्रा वर्ग में अपनी काबिलियत जमाते हुए कांस्य पदक जीता और ओलंपिक मेडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनी।
राज्यवर्धन सिंह राठौर (Rajyavardhan Singh Rathore): मेंस डबल ट्रैप शूटिंग (men’s double trap shooting) – 2004 एथेंस ओलम्पिक (Olympic Athen’s) – रजत पदक (Sliver medal)
यह एक भारतीय निशानेबाज हैं जिन्होंने 2004 ग्रीष्मकालीन ओलम्पिक, एथेंस में डबल ट्रैप स्पर्धा में रजत पदक विजेता हैं। ये स्वतंत्र भारत के प्रथम खिलाड़ी हैं जिन्होंने व्यक्तिगत रजत पदक जीता। हालांकि उनसे पहले भारत में जन्मे नॉर्मन प्रिचर्ड ने 1900 ग्रीष्मकालीन ओलम्पिक में दो रजत पदक जीते थे परतुं वह एक ब्रिटिशर थे और भारत की ओर से उन्होंनेे ओलंपिक में भाग लिया था।
2004 एथेंस ओलंपिक में भारत अपने खेल का प्रदर्शन लगातार बढ़ा रहा था। उसी के चलते भारत शूटिंग में अव्वल रहा और यह मेडल आया राजस्थान के राज्यवर्धन सिंह राठौर की तरफ से। इतना ही नहीं सिल्वर मेडल जीतकर राठौर पहले भारतीय शूटर बने जिन्होंने ओलंपिक गेम्स में पोडियम में जगह बनाई।
अभिनव बिंद्रा (Abhinav Bindra): 10 मीटर एयर राइफल (Air rifle) – 2008 बीजिंग ओलंपिक (Beijing Olympic) – स्वर्ण पदक (Gold medal)
28 सितंबर 1982 को देहरादून में जन्मे अभिनव बिन्द्रा (Abhinav Bindra) निशानेबाज़ी के गौरवशाली करियर में कॉमनवेल्थ गेम्स और एशियन गेम्स व वर्ल्ड चैम्पियनशिप के स्वर्ण पदक के साथ ही और भी कई पदक जीत चुके थे, परंतु अब तक भारत में व्यक्तिगत रूप से एक भी स्वर्ण पदक नही था।
ओलंपिक में भारत केे इतिहास का सबसे यादगार पल बीजिंग 2008 के ओलंपिक से आया जब अभिनव बिंद्रा (Abhinav Bindra) ने मेंस 10 मीटर एयर राइफल में ऐतिहासिक स्वर्ण पदक (Gold medal) पर अपना निशाना जमाया। और देश के लिए पहला व्यक्तिगत ओलंपिक स्वर्ण पदक जीता।
और इसी के साथ वह ओंलपिक में भारत के एतिहास के अब तक के एक मात्र व्यक्तिगत रूप से स्वर्ण पदक जीतने वाले व्यक्ति बन गए।
विजेंदर सिंह (Vijender Singh): मेंस बॉक्सिंग (Men’s boxing) – 2008 बीजिंग ओलंपिक (Beijing Olympic) – कास्ंय पदक (Bronze medal)
देश के स्टार बॉक्सर विजेंदर सिंह यू तो पहले ही कई पदक अपने नाम कर चुके थे परतुं अब तक भारत ने ओलंपिक में बाक्सिंग का एक भी पदक नही जीता था।
2008 बीजिंग ओलंपिक भारत के लिए बहुत यादगार शाबित हुआ जहां अभिनव बिद्रां अपने अभिनव का प्रदर्शन करतेे हुए देश को पहला गोल्ड दिलाने में कामयाब हो गए तो वंही विजेंदर सिंह ने भी अपना लोहा मनवाते हुए देश को बाक्सिंग में अपना पहला पदक दिलाने में कामयाब साबित हुए इस संस्करण में विजेंदर सिंह पहले भारतीय बॉक्सर बने, जिन्होंने अपनी सरज़मीं के लिए बाक्सिगंं में पहला कास्ंय पदक जीता था।
सुशील कुमार (Sushil Kumar): मेंस 66 किग्रा कुश्ती – 2008 बीजिंग ओलंपिक (Beijing Olympic) – कास्ंय पदक (Bronze medal) और लंदन 2012 (London Olympics) – रजत पदक (Silver medal)
के डी जाधव के बाद भारत को रेसलिंग में पदक जीते 5 दशक हो चुके थे इस लम्बे इतंजार को खत्म किया भारतीय होनहार पहलवान सुशील कुमार ने ।
2008 के बीजिंग ओलंपिक में अभिनव बिद्रां व विजेद्रं सिहं के साथ ही सुशील कुमार ने भी ओलंंपिक पदक जीता यह पदक उन्होंने कुस्ती की 66 किग्रा वर्ग की प्रतिषपर्धा में जीता। तकरीबन 70 मिनट के मुकाबले में सुशील ने जीत हासिल की और उन्हें कास्यं पदक से नवाज़ा गया। सुशील कुमार ने यह पदक रेपेचेज राउंड में जीता था।
लंदन 2012 (London 2012 Olympics) – रजत पदक (Silver medal)
2008 के बीजिंग ओलंपिक में कास्यं पदक से अपनी जीत का परचम पहले ही लहरा चुके सुशील कुमार लंदन ओलंपिक के लिए उद्घाटन समारोह में भारतीय टीम के ध्वजवाहक चुने गए क्योंकि सुशील कुमार 2012 में भारत की सबसे बड़ी पदक आशा भी थे। परंतु फाइनल मुकाबले में उन्हें हार का सामना करना पड़ा जिससे वह रजत पदक तो जीत गए पर उनका स्वर्ण पदक का सपना टूट गया।
परतुं वह इतिहास के पन्नों में अपना नाम दर्ज कराने से नहीं चुके क्योंकि 2012 के लंदन ओलंपिक में रजत पदक, 2008 के बीजिंग ओलंपिक में कांस्य पदक जीतकर लगातार दो ओलम्पिक मुकाबलों में व्यक्तिगत पदक जीतने वाले पहले भारतीय खिलाड़ी बन गए।
गगन नारंग (Gagan Narang): 10 मीटर एयर राइफल (Air rifle) – लंदन 2012 – कांस्य पदक (Bronze medal)
2006 के राष्ट्रमंडल खेलों में चार स्वर्ण पदक विजेता और विश्व चैंपियन रहने के साथ ही गगन नारंग ने कई रिकार्ड और पदक अपने नाम किए और इतना ही नहीं, उन्होंने जर्मनी में एक प्री-ओलंपिक इवेंट में एयर राइफल में 704.3 अंको के स्कोर के साथ एक नया विश्व रिकॉर्ड बनाते, हुए वर्ष 2008 के ओलंपिक में बहुत कम अंतराल से फाइनल में अपनी जगह बनाने से भी चुकंं गए हालांकि उनके करियर के रिकॉर्ड को देखते हुए उन्हें स्वर्ण पदक का प्रबल दाबेदार समझा जा रहा था।
2008 के बीजिंग ओलंपिक में काउंटबैक के कारण अंतिम दौर से बाहर होने के बाद गगन नारंग बहुत अधिक हतास और निराश हुए परतुं इसके बाद भी रूके नही ओर लंदन 2012 में एक बहुत ही कड़े मुकाबले के बाद वह मेंस 10 मीटर एयर राइफल में कांस्य पदक जीतने में कामयाब हुए।
मैरी कॉम (Mary Kom): वूमेंस फ्लाईवेट बॉक्सिंग (women’s boxing flyweight) – लंदन 2012 (London Olympics) – कांस्य पदक (Bronze medal)
बात जब होती है महिला बॉक्सर की तो एक ही नाम सभी के जहन में आता है और वह है ”एम. सी. मेरीकॉम” (Mangte Chungneijang Mary Kom) का जो भारत ही नही सम्पूर्ण विश्व में अपना लाेेहा मनवा चुंकी है।
‘सुपर मॉम’‘ के नाम से विख्यात मेरीकॉम 6 बार की विश्व चेंपियन सहित विश्व चेंपियनशिप में उनके पास कुल 8 खिताब हैं ऐसे में जब वह ओलंपिक के लिए उतरी तो सम्पूर्ण विश्व की नज़र उनपर थी । बात है लंदन ओलंपिक कि जो वर्ष 2012 में आयोजित किया गया था, हांलाकि वह पूरे टूर्नामेंट में अच्छी लय में थी लेकिन सेमीफाइनल में ग्रेट ब्रिटेन की उस समय की चैंपियन निकोला एडम्स (Nicola Adams) ने उन्हें हरा दिया, ओर इन्हें कास्ंय पदक (Bronze medal) से संतोष करना पड़ा।
विजय कुमार (Vijay Kumar) : रैपिड पिस्टल शूटिंग (rapid fire pistol) (25 मीटर) – लंदन 2012 (London Olympics) – रजत पदक (Silver medal)
ओलंपिक में वर्ष 2004 में राज्यवर्धन सिंह राठौर (Rajyavardhan Singh Rathore) के द्वारा रजत पदक (silver medal) और फिर 2008 में अभिनव बिन्द्रा (Abhinav Bindra) द्वारा स्वर्ण पदक प्राप्त करके भारतीय खिलाड़ी, निशानेबाजी में अपनी प्रतिष्ठा पर चार चांद तो लगा ही चुकी थे। ओर इसके बाद ऐसे में वर्ष 2012 में मोका मिलता है भारत के एक ऐसे निशानेबाज खिलाड़ी को जिनका निशाना तो अचूक था, परतुं अंतराष्ट्रीय प्रतिष्ठा अभी कम थी।
हालांकि विजय कुमार (Vijay Kumar) इससे पहले भी वर्ष 2006 के कॉमनवेल्थ गेम्स (Commonwealth Games) में 2 स्वर्ण पदक (Gold medal) जीत चुके थे। परतुं अब बात भारत के गौरव की थी क्योंकि ये विजय का पहला ओलंपिक था और उनसे पहले ही भारत के कई दिग्गज निशानेबाज़़ अपने प्रदर्शन से देश को गोरानवित कर चुके थे।
इसलिए भी विजय पर देश की लााज रखने का दबाव कुछ ज्यादा ही था, इससे विजय हतोत्साहित नहीं हुए और संयम के साथ निशाना लगाते हुए रजत पदक पर कब्ज़ा जमा लिया था, और वह भी अपने पहले ही ओलंपिक में शामिल होते हुए। निशानेबाज विजय कुमार ने 25 मीटर रैपिड पिस्टल (25m rapid pistol) में रजत पदक (silver medal) के साथ रिकॉर्ड बुक में अपना नाम भी दर्ज करवा।
योगेश्वर दत्त (Yogeshwar Dutt): मेंस कुश्ती (wrestler) (60 किग्रा) – लंदन 2012 – कांस्य पदक (Bronze medal)
लंदन 2012 से पहले तीन बार ओलंपिक में हिस्सा ले चुके अनुभवी पहलवान योगेश्वर दत्त (Yogeshwar Dutt) ने आखिरकार 60 किग्रा वर्ग में कांस्य पदक जीता। उन्होंने अंतिम रेपेचेज राउंड में उत्तर कोरिया के पहलवान को मात्र 1:02 मिनट में हरा दिया।
लंदन ओलिंपिक में योगेश्वर को हराने वाले और रजत पदक जीतने वाले रूसी पहलवान बेसिक कुदुखोव (Besik Kudukhov) डोपिंग के दोषी पाए गए थे जिसके बाद उनका रजत पदक छीन लिया गया था. हालांकि यह फैसला उनकी मौत के बाद हुआ. 4 बार वर्ल्ड चैंपियन रहे रूसी पहलवान बेसिक कुदुखोव की मौत 2013 में एक कार दुर्घटना में हो गई थी. अत: योगेश्वर दत्त का पदक रजत से अपडेट किया गया ।
परतुं योगेश्वर दत्त ने कहा कि रशियन पहलवान बेसिक कुदुखोव की मौत के बाद उनके परिवार से मेडल छीनना ठीक नहीं होगा. योगेश्वर ने ओलंपिक संघ से अपील करते हुए रजत पदक लेने से इनकार कर दिया।
साइना नेहवाल (saina nehwal): वूमेंस सिंगल्स बैडमिंटन (women’s badminton singles) लंदन 2012 -कांस्य पदक (Bronze medal)
वर्तमान में यदि शीर्ष महिला भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी कि बात होती है तो एक नाम आपको जरूर देखने मिलेगा और वह है साइना नेहवाल, भारत के लिए बैडमिंटन के खेल में जबरदस्त बदलाव देखने को तब मिला जब साइना नेहवाल ने ओलंपिक गेम में पदक जीता। नेहवाल, महिलाओं में ही नहीं बल्कि ओलंपिक के अदंर भारतीय बैडमिंटन के इतिहास में पदक जीतने वाले पहली खिलाड़ी बनी।
साइना नेहवाल ने वर्ष 2012 में लंदन ओलंपिक में अपना जबरदस्त खेेल दिखाते हुए सेमीफाइनल में पहुंची हालांकि वह सेमीफाइनल का मुकाबला हार गई। और उन्हें कास्यं पदक से संंतोष करना पड़ा पर वह इतिहास के पन्नों में अपना नाम दर्ज कराने से नही चूकी, क्योंकि साइना नेहवाल बेटमिटन में ओलंपिक में पदक जीतने वाली भारत की पहली खिलाड़ी बन चुकी थी।
हालांकि बिजिंग में वर्ष 2008 में हुए ओलंपिक में भी उन्हें यह मोका मिला था। पर अपना क्वॉटर फाइनल मुकाबला हार जाने के कारण वह ओलंपिक में पदक जितने से चुकं गई थी।
साक्षी मलिक (Sakshi Malik) – रेसलिंग (58 किग्रा) – रियो (Rio) 2016 – कांस्य पदक (Bronze medal)
भारत में यदि कुश्ती की बात करी जाती है तो सबसे पहले आने वाला नाम फोगाट बहनों का हैं| ओलंपिक में 58 किग्रा में भारत की पहली प्रबल दावेदार गीता फोगाट थीं. और इनके हट जाने के बाद उस केटेगीरी में खेलने के लिए जब साक्षी मलिक (Sakshi Malik) को चुना गया तो ऐसे में इन पर दबाव और भी बड़ गया पर हताश न होते हुए साक्षी ने इसे एक मोके की तरह लिया और देश की उम्मीदों पर खरी भी उतरी।
भारत के ओलंपिक दल में देर से प्रवेश करने वाली साक्षी मलिक कुश्ती में ओलंपिक पदक जीतने वाली पहली महिला भारतीय पहलवान बनीं। उन्होंने 58 किग्रा कांस्य पदक जीतने के लिए किर्गिस्तान की ऐसुलु टाइनीबेकोवा को 8-5 से हराया। यह मुकाबला इनके लिए काफी कड़ा था। क्योंकि इन्हें यह मोका भी रेपचेंज राउडं में मिला था ओर अपने पहले ही मुकाबले में सााक्षी 0-5 से पिछे हो चुंकी थी परतुं ”कमबेक क्वीन” के नाम से मशहूर साक्षी ने यहां भी कमबेक किया ओर अपनी प्रतिद्वंदी पहलवान को 8-5 से हरा कर देश को एक बार फिर बताया की उन्हे कमबेक क्वीन का खिताब क्यों प्राप्त है।
साक्षी इस तरह भारतीय ओलंपिक के इतिहास में कास्य पदक जीतने वाली तीसरी महिला खिलाड़ी बन गयी है। जबकि साक्षी ओलंपिक इतिहास में कुश्ती में पदक जीतने वाली चौथी भारतीय खिलाड़ी बन गयी है।
पीवी सिंधु (P.V Shindu): वूमेंस सिंगल्स बैडमिंटन (women’s badminton singles) – रियो (Rio) 2016 – रजत पदक (Silver medal)
भारत में यदि बेटमिंटन की बात करी जाए तो अब तक की सबसे सफल खिलाड़ीयों में पी. वी. सिंधु (Pusarla Venkata Sindhu) का नाम शीर्ष पर हैं क्योंकि यह वर्ल्ड चैंपियनशिप जीतने वाली पहली भारतीय शटलर होने के साथ ही साथ लगातार 2 ओलंपिक में पदक जितने वाली भारत की एक मात्र महिला खिलाड़ी भी हैंं।
वर्ष 2012 में जहांं साइना नेहवाल ने बैडमिंटन में कास्यं पदक जीत कर इस खेल की नीव तैयार कर ही दी थी तो वहीं पी.वी. सिंधु ने भी इस नीव को ओर भी मजबूत करते हुए , अगले ही ओलंपिक में जिसका आयोजन वर्ष 2016 में रियो में हुुआ, रजत पदक जीत कर देश को गौरानवित किया ।
ब्राजील के रियो डि जेनेरियो में आयोजित किये गए 2016 ग्रीष्मकालीन ओलम्पिक खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए सिंधु महिला एकल स्पर्धा के फाइनल में पहुंचने वाली भारत की पहली महिला बनीं, ओर सेमी फाइनल मुकाबले में सिंधु ने जापान की नोज़ोमी ओकुहारा (Nozomi Okuhara) को सीधे सेटों में 21-19 और 21-10 से हरा दिया, जिससे फाइनल में उनका मुकाबला उस समय कि विश्व की प्रथम वरीयता प्राप्त खिलाड़ी स्पेन की कैरोलिना मैरिन (Carolina Marin) से हुआ। पहली राउण्ड में तो सिंधु ने उन्हें 21-19 से हरा कर करारी सिकस्त दी लेकिन दूसरी राउण्ड में मैरिन 21-12 से विजयी रही, जिसके कारण मैच तीसरी राउण्ड में चला गया ओर तीसरे राउण्ड में मैरिन 21-15 के स्कोर से मुकाबला जितने में कामयाब रही, ओर सिंधु को रजत पदक से संतोष करना पड़ा।
दोस्तों आपको हमारा यह प्रयास कैसा लगा कमेंट करके जरूर बतायें।
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