दोस्तों यह पोस्ट राष्ट्रीय खेल दिवस के महत्व को देखते हुए तैयार कि गई है, इस पोस्ट में हम जानेगें कि इस दिवस को कयों और किसके सम्मान में मनाया जाता है और इस दिन कौन कौन से पदक दिए जाते है।
राष्ट्रीय खेल दिवस (National Sports Day) हर वर्ष ”29 अगस्त” के दिन मनाया जाता है यह दिवस भारत एवं सम्पूर्ण विश्व में ”हॉकी के जादूगर” ( magician of hockey / Hockey Wizard) के नाम से मशहूर मेज़र ध्यानचंद (Major Dhyan Chand) केे जन्मदिन के अवसर पर मनाया जाता है। राष्ट्रीय खेल दिवस (National Sports Day) को देश में पहली बार वर्ष 2012 में मनाया गया और तभी से हर वर्ष इस दिन को ”नेशनल स्पोर्ट्स डे”’ के रूप में मनाया जाता है।

इस दिन भारत के राष्ट्रपति द्वारा भारतीय खिलाड़ीयों को उनके खेल में योगदान को देखते हुए देश के सर्वोच्च खेल सम्मान, मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार (Major Dhyan Chand Khel Ratna Puruskar) जिन्हें पूर्व मे राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार( Rajiv Gandhi Khel Ratna Award) के नाम से जाना जाता था, और साथ ही अर्जुन और द्रोणाचार्य पुरस्कार (Arjuna and Dronacharya awards) जैसे पुरस्कार, नामित लोगों को दिए जातें हैं। ऐसे में आइए जानते हैं कौन थे मेजर ध्यानचंद जिनके सम्मान में उनके अवतरण दिवस को राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है।
कौन है मेज़र ध्यानचंद / Who is Major Dhyan Chand

उनका जन्म 29 अगस्त 1905 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जिले के एक राजपूत परिवार में हुआ था। वे भारतीय फील्ड हॉकी के भूतपूर्व खिलाड़ी एवं कप्तान थे। मेजर ध्यानचंद भारत के ही नही अपितु सम्पूूर्ण विश्व में हॉकी के नं. 1 खिलाड़ी माने जाते है। इनके विश्व हॉकी में बनाये रिकार्ड को तोड़़ना तो दूर अब तक कई रिकार्ड को खिलाड़ी छू भी नहीं पाए हैं।
आखिर क्यों कहते हैं मेजर ध्यानचंद को हाॅॅकी का जादूगर / After all, why is Major Dhyan Chand called the magician of hockey?
अपने करियर में अंतराष्ट्रीय हॉकी में 400 से अधिक गोल दाग चुके इस महान खिलाड़ी के सामने किसी टीम का टिकना तो दूर यदि वह कुछ गोल कर ले यह भी बड़ी बात थी। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि जब यह खिलाड़ी मेदान में उतरते थे, और जैसे ही एक बार गेंद इनकी स्टिक पर आती थी तो वह ”गोल कोस्ट’ पर जरूर पहुचाते थे, जैसे मानो गेंद इनकी हॉकी स्टिक से चिपक जाती हो ”इसलिए इन्हें हॉकी का जादूगर कहा जाने लगा”’, और दिलचस्प बात तो यह थी कि जब अपनी टीम के साथ हो रहे मुकाबले को देखने स्वयं आए एडोल्फ हिटलर (Adolf Hitler) के सामने भारतीय टीम ने जर्मन की टीम को बुरी तरह (8-1) से परास्त कर दिया और हिटलर के शक के कारण उनकी स्टिक को चेक करने के लिए मंगवा कर तोड़ कर देखा गया जिसके बाद हिटलर इनसे बहुत अधिक प्रभावित हुए और इन्हें जर्मन की टीम से खेलने के लिए कहा परतुं यहां भी उनके खेल प्रेम के साथ साथ राष्ट्र प्रेम के सामने हिटलर नतमस्तक हो गए क्योंकि ध्यानचंद ने कहा मेरा जन्म भारत में हुआ है और इसलिए में सिर्फ अपने राष्ट्र के लिए ही खेल सकता हुं ।
मेजर ध्यानचंद की मोजूदगी में भारतीय पुरूष हाॅकी टीम ने अंतराष्ट्रीय स्तर पर भारत का एक स्वर्णीम इतिहास रच दिया था और इस सफर की शुरूआत होती है वर्ष 1928 से और मेजर कि अगुवाई वाली टीम लगातार 3 बार स्वर्ण पदक लाने में कामयाब हुई ।
एम्सटर्डन ओलंपिक 1928 /amsterden olympics 1928

1928 में एम्सटर्डम ओलम्पिक खेलों में पहली बार भारतीय टीम ने मेजर ध्यानचंद कि अगुवाई में भाग लिया और एम्स्टर्डम (नीदरलैंड) में हुए इसी ओलिंपिक से भारतीय हाकी खिलाड़ियों ने अपने स्वर्णिम इतिहास कि शुरूआत भी कि। आपको यह जानकर हेरानी होगी कि इस पूरी प्रतियोगिता में भारतीय हाकी टीम ने कुल 29 गोल किए, वह भी खुद एक भी गोल खाए बिना जिसमें से 14 गोल तो अकेले मेजर ध्यानचंद ने दागे थे। भारत ने आस्ट्रिया को 6-0 से, बेल्जियम को 9-0 से, डेनमार्क को 5-0 से, स्विट्जरलैंड को 6-0 से और फाइनल में मेजबान नीदरलैंड को 3-0 से हराकर अपनेे पहले ही ओलंपिक में विश्व हॉकी में एक नया किर्तीमान रच दिया ।
लास एंजलिस ओलिंपिक 1932 / Los Angeles Olympics 1932
इसके बाद वर्ष 1932 में हुए लास एंजलिस ओलिंपिक हुए जहां एक बार फिर से भारतीय टीम का प्रदर्शन देखते ही बनता था। भारत टीम का पहला मुकाबला जापान से हुआ, जिसे भारत ने 11-1 से जीत लिया और वहीं इस ओलिंपिक में भारतीय हाकी टीम ने मेजबान अमेरिका को 24-1 से शिकस्त दी थी। इस मैच में मेजर ध्यानचंद ने 8 और उनके भाई रूप सिंह ने 10 गोल किए थे। जिसके बाद अमेंरिका के एक अखबार में तो यह लिखा गया कि ”भारतीय टीम पूर्व देश से आया तूफान थी जो अमेरिकी खिलाड़ीयों को रोंदते हुए चला गया”।
बर्लिन ओलिंपिक,1936 / Berlin Olympics, 1936

यहां भी भारत ने शानदार आगाज किया लीग स्टेज के अपना पहले मैच में हंगरी को 4-0 से शिकस्त दी। इसके बाद भारत ने अमेरिका को 7-0 से और जापान को 9-0 से हराकर सेमीफाइनल में प्रवेश किया और अपने सेमीफाइनल के मुकाबले में भारत ने फ्रांस को 10-0 से हराकर फाइनल में जगह बनाई।
फाइनल मेंच में भारत का मुकाबला जर्मनी से हुआ उस फाइनल सेे पहले भारत का मुकाबला जर्मनी कि टीम से एक अभ्यास मैंच में हुआ था जिसमें भाारत कि टीम जर्मनी से 4-1 से हार गई जिसका भारतीय टीम को बहुत अघात पहुंचा इस हार का ज्रिक मेज़र ने अपनी किताब ”GOAL – AN AUTOBIOGRAPHY BY DHYAN CHAND” में किया है कि में मरते दम तक उस हार को नही भूूलुंगा और इसके बाद भारत ने अभ्यास मैच में मिली हार का बदला लेते हुए जर्मनी को 8-1 से इतना बुरी तरह परास्त किया कि मेज़बान देश जर्मनी के प्रमुुुख एडोल्फ हिटलर भी जो उस समय इस मैंच को देखने आए थे मेज़़र के जबरदस्त फेंन हो गए और इस जीत के बाद भारतीय हॉकी टीम ने तीसरी बार स्वर्ण पदक पर कब्जा किया । 1936 का बर्लिन ओलंपिक मेजर ध्यानचंद का तीसरा और आखिरी ओलंपिक था क्योंकि उन्होंने उसके बाद रिटायर होने का फैसला कर लिया था। 1928 का एम्सटर्डम ओलंपिक, 1932 का लॉस एंजेल्स ओलंपिक के बाद निस्संदेह उनकी क्षमता को देखते हुए 1936 के बर्लिन ओलंपिक में उन्हें भारतीय हॉकी टीम की कप्तानी सौंपी गई और इस ओलंपिक में भी भारत ने विजय प्राप्त की।
राष्ट्रीय खेल दिवस पर मिलने वाले पुरस्कार एवं सम्मान /Awards and honors to be received on National Sports Day
मेजर ध्यान चंद खेल रत्न पुरस्कार /Major Dhyan Chand Khel Ratna Award

मेजर ध्यान चंद खेल रत्न पुरस्कार (Major Dhyan Chand Khel Ratna Award) जिन्हें पहले राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार (Rajiv Gandhi Khel Ratna Award) के नाम से जाना जाता था। भारत में दिया जाने वाला सर्वोच्च खेल सम्मान है। यह पुरस्कार वर्ष 1991 से दिया जा रहा है, इस पुरस्कार को भारत एवं विश्व हॉकी के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी के नाम पर रखा गया है, जिनके सम्मान में उनके जन्मदिन के अवसर पर इस दिवस को मनाया जाता है और साथ ही जो तीन बार ओलम्पिक के स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय हॉकी टीम के प्रमुख खिलाड़ी एवं पूर्व कप्तान भी रहेंं है।
यह पुरस्कार खेल एवं युवा मंत्रालय (Ministry of Sports and Youth) की तरफ से भारत के राष्ट्रपति जी के द्वारा प्रदान किया जाता है। इस पुरस्कार को जीतने वाले खिलाड़ी को पुरस्कार के तौर पर एक पदक, सर्टिफिकेट और 25 लाख रुपये का नकद इनाम दिया जाता है पहले यह राशि 7.5 लाख रुपये थी साथ ही सम्मानित व्यक्तियों को रेलवे की मुफ्त पास सुविधा प्रदान की जाती है जिसके तहत मेजर ध्यान चंद खेल रत्न पुरस्कार विजेता राजधानी या शताब्दी गाड़ियों (Rajdhani or Shatabdi trains) में प्रथम और द्वितीय श्रेणी वातानुकूलित कोचों में मुफ्त में यात्रा कर सकते हैं।
अर्जुन पुरस्कार / Arjuna Award

अर्जुन अवॉर्ड (Arjuna Award) खेल क्षेत्र में दिया जाने वाला सबसे पुराना अवार्ड है और साथ ही यह खेल क्षेेत्र में मेज़र ध्यानचंद खेल रत्न के बाद दूसरा सबसे सम्मान माना जाता है। इसकी शुरुआत वर्ष 1961 में हुई थी। देश में अलग अलग खेलों के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों कों हर साल ये अवॉर्ड दिया जाता है इस अवॉर्ड के विजेता खिलाड़ियों को अर्जुन की कांस्य प्रतिमा, सर्टिफिकेट और 15 लाख रूपये के नकद इनाम से सम्मानित किया जाता है यह राशि पहले 5 लाख रूपये थी।
द्रोणाचार्य पुरस्कार / Dronacharya Award

द्रोणाचार्य पुरस्कार(The Dronacharya Award), आधिकारिक तौर पर खेल और खेलों में उत्कृष्ट कोचों को दिया जाता है यह पुरस्कार गुरू द्रोण के नाम पर दिये जातें है जिन्हें द्रोणाचार्य के नाम से भी जाना जाता है । इसकी स्थापना वर्ष 1985 में कि गई थी। इस पुरस्कार में द्रोणाचार्य का एक कांस्य प्रतिमा, एक प्रमाण पत्र, औपचारिक पोशाक, और 10लाख का नकद पुरस्कार दिया जाता है यह राशि पहले 5 लाख रूपये थी।
वर्ष 2011 से भारत सरकार ने द्रोणचार्य लाइफटाइम अवार्ड (Dronacharya Lifetime Award) भी आरम्भ किए हैं और यह सम्मान उन कोचों को दिया जाता है, जिन्होंने सफलतापूर्वक खिलाडिय़ों या टीमों को प्रशिक्षित किया, और भारतीय खेल में अपने करियर के 20 या उससे अधिक वर्षो के योगदान को देखते हुुए दिये जातें हैं। इस खिताब को जीतने वाले दिग्गज कोच को 15 लाख रुपए और द्रोण के पुतले के साथ सर्टिफिकेट भी दिया जाता है।